यी मठ पर
खाली वक्त में
झरने के पास बैठा
खेल रहा हूँ रोडियों से
आस पास खोजता हूँ जंगली फूल
सुनता हूँ चिडियों की चहचहाहट
चारों तरफ़ है
वासंती झरनों की गूँज
शुरुवाती वसंत
दिन कुनकुने होते जा रहे हैं
बर्फ पिघलती जा रही है
लगातार फैलता प्रकाश है धरती पर
बर्फ हो रही है गायब
एक ही चीज़ है जिसे वसंत बदल नहीं पाया
मेरी कनपटियों के पाले जैसी सफेदी वाले बाल ।
चीनी कवि पाई छु यी : चीनी कवि ; रचनाकाल (७७२ -- ८४६)
Saturday, June 20, 2009
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